कविता संग्रह >> थी हूँ रहूँगी थी हूँ रहूँगीवर्तिका नन्दा
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अलग-अलग स्वरों की कविताओं का संगम
ये हैं प्राइवेट टीवी चैनलों के शुरूआती दौर की एक विख्यात अपराध पत्रकार की लिखी कविताएँ। पहली नज़र में लगता है कि नम धरातल पर बैठकर गुनगुनी धूप सेंकते हुए बुनी गई हैं ये कविताएँ। वर्तिका नन्दा ने सालों अपराध पर काम किया, बलात्कार की रिपोर्टिंग पर शोध किया, इसलिए उनकी कविताओं को एक अलग लैंस से देखना लाज़मी हो जाता है। अपराध की कठोरता के बाद कविता के ताने-बाने में आने का प्रयास इसीलिए एक विरोधाभासी भाव भी पैदा करता है।
मरजानी अलग-अलग स्वरों की कविताओं का संगम है। कवयित्री के बचपन के झूले आतंकवाद की सुरंग से होकर गुज़रे हैं। यौवन से उम्मीदें होते हुए भी यहाँ उनकी क्षणभंगुरता पीछा करती दिखती है। खुद युवा होते हुए भी कवयित्री ने बुढ़ापे और साथ ही मृत्यु को लगातार अपने ज़ेहन में रखा है। कुछ कविताएँ मीडिया पर भी हैं, मीडिया की उस संवेदनहीनता पर चोट करती हुईं जो उसका हिस्सा बनने पर किसी को भी छू सकती है।
ये कविताएँ शाब्दिक संचय नहीं बल्कि सतत यात्रा का अहसास कराते हुए हमारे साथ-साथ चलती दिखती हैं।
एक और पहलू। कुछ कविताएँ यह अहसास भी साफ़ तौर पर कराती हैं कि यह आधुनिक महिला की कलम से निकली साधारण महिला की गाथा है। ऐसी कविताओं की मार्मिकता और दो-टूकपन अपने आपमें अनूठा है।
मरजानी अलग-अलग स्वरों की कविताओं का संगम है। कवयित्री के बचपन के झूले आतंकवाद की सुरंग से होकर गुज़रे हैं। यौवन से उम्मीदें होते हुए भी यहाँ उनकी क्षणभंगुरता पीछा करती दिखती है। खुद युवा होते हुए भी कवयित्री ने बुढ़ापे और साथ ही मृत्यु को लगातार अपने ज़ेहन में रखा है। कुछ कविताएँ मीडिया पर भी हैं, मीडिया की उस संवेदनहीनता पर चोट करती हुईं जो उसका हिस्सा बनने पर किसी को भी छू सकती है।
ये कविताएँ शाब्दिक संचय नहीं बल्कि सतत यात्रा का अहसास कराते हुए हमारे साथ-साथ चलती दिखती हैं।
एक और पहलू। कुछ कविताएँ यह अहसास भी साफ़ तौर पर कराती हैं कि यह आधुनिक महिला की कलम से निकली साधारण महिला की गाथा है। ऐसी कविताओं की मार्मिकता और दो-टूकपन अपने आपमें अनूठा है।
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